अरविन्द दाँगी "विकल" Joined February 2017 24 Posts · 815 Views Follow Followers Loading followers जो बात हो दिल की वो कलम से कहता हूँ.... गर हो कोई ख़ामोशी...वो कलम… Read more जो बात हो दिल की वो कलम से कहता हूँ…. गर हो कोई ख़ामोशी…वो कलम से कहता हूँ… ✍अरविन्द दाँगी “विकल” Share Share Facebook Twitter WhatsApp Copy link to share Posts (24) All कविता (24) Sort by: Date Views बस क़लम वही रच जाती है... अरविन्द दाँगी "विकल" May 25, 2017 · कविता 1 · 1 · 28 काश्मीर का प्रत्युत्तर अरविन्द दाँगी "विकल" Apr 17, 2017 · कविता 8 चंद पैसो के लिये देश से तुम न करो मन दुषित... अरविन्द दाँगी "विकल" Apr 15, 2017 · कविता 22 प्रत्युत्तर दो काश्मीर में और सेना को फिर शोहरत दो.. अरविन्द दाँगी "विकल" Apr 15, 2017 · कविता 12 है केवल काश्मीर नहीं, सिर मुकुट है भारत का वो... अरविन्द दाँगी "विकल" Mar 30, 2017 · कविता 32 हम ही तो वो है जिन्होंने शून्य का इतिहास रचा... अरविन्द दाँगी "विकल" Mar 30, 2017 · कविता 17 नूतन नववर्ष सनातन ये.... अरविन्द दाँगी "विकल" Mar 30, 2017 · कविता 7 क्रोंच विरह से निकली कविता,हर उर की भाषा बन आयी हो... अरविन्द दाँगी "विकल" Mar 21, 2017 · कविता 29 टूटकर बिखरना अब तज भी दो यार... अरविन्द दाँगी "विकल" Mar 21, 2017 · कविता 21 ये रंगों का महापर्व खुशियां फिर ले आएगा... अरविन्द दाँगी "विकल" Mar 17, 2017 · कविता 8 क्यों न होली इस बार हम कुछ यूं मनाये... अरविन्द दाँगी "विकल" Mar 12, 2017 · कविता 14 खण्ड खण्ड कर दिया भारत को, अखण्ड भारत तो ख्वाब रहा अरविन्द दाँगी "विकल" Mar 9, 2017 · कविता 159 हाँ मै हूँ कलम…मुझको तो हर पल लड़ना होगा… अरविन्द दाँगी "विकल" Mar 8, 2017 · कविता 24 हा बन सको तो बनो महावीर की बेटियों से तुम जाने जाओ... अरविन्द दाँगी "विकल" Mar 8, 2017 · कविता 10 नारी तुम अधिकार नहीं तुम तो जीवन का आकार हो... अरविन्द दाँगी "विकल" Mar 8, 2017 · कविता 229 होली ये ख़ुशनुमा लम्हो को फिर सजाने का मौसम है.. अरविन्द दाँगी "विकल" Mar 7, 2017 · कविता 18 हर रात मै शिव से मिलता हूँ... अरविन्द दाँगी "विकल" Mar 6, 2017 · कविता 10 ये साल नया सा ऐसा हो... अरविन्द दाँगी "विकल" Mar 6, 2017 · कविता 7 मै अपनी कलम से अपना किरदार लिखता हूँ... अरविन्द दाँगी "विकल" Mar 4, 2017 · कविता 85 तब तब शिव ताण्डव होता है... अरविन्द दाँगी "विकल" Mar 3, 2017 · कविता 14 हा ये सच है कि गाँधी फिर आ नहीं सकते अहिंसा का पाठ पढ़ाने को... अरविन्द दाँगी "विकल" Mar 3, 2017 · कविता 9 चल रहा चुनावी महासमर शब्दों के बाण से... अरविन्द दाँगी "विकल" Mar 2, 2017 · कविता 19 क्यों न होता यहाँ इक साथ चुनाव..? अरविन्द दाँगी "विकल" Mar 1, 2017 · कविता 20 करो तो कुछ ऐसा की बेटियों से तुम पहचाने जाओ यार... अरविन्द दाँगी "विकल" Mar 1, 2017 · कविता 1 · 13