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5 Mar 2017 · 1 min read

II…मिट्टी की खुशबू…II

किताबें धर्मों की जो भी वो नफरत दे नहीं सकती l
वतन की मिट्टी की खुशबू खिलाफत दे नहीं सकती ll

कभी हंसना कभी रोना कभी मिलना बिछड़ना है l
जो दे सकती मोहब्बत है वो नफरत दे नहीं सकती ll

चलो एक साथ चलते हैं अमन की राह पर दोनों l
ए गुलशन साद है हमसे बगावत दे नहीं सकती ll

समझ में कुछ नहीं आता मेरे मोमिन या मौला को l
दुआ तकरार में जाकर के बरकत दे नहीं सकती ll

चलो मिलजुल के हम दोनो रहे एक छत के ही नीचे l
ए मन में जो दीवारें घर कि सूरत दे नहीं सकती ll

गिले शिकवे सभी भूलो ‘सलिल’ अपना के तो देखो l
दिलों को जोड़ने का फन सियासत दे नहीं सकती ll

संजय सिंह ‘सलिल’
प्रतापगढ़,उत्तर प्रदेश I

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