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11 Feb 2017 · 1 min read

II आज का गांव II

आज इंसान खुद से हि अनजान क्यों l
रोज मिलते न होती दुआ बात क्यों ll

रह गया गांव का कोई मतलब नहीं l
बैठकों में वो रौनक न अभिमान क्यों ll

आज आती नहीं कोई पाती पिया l
हाथ मोबाइलों की हि मिस कॉल क्यों ll

बाग उपवन भि अब तो वीराने हुए l
गाती अब तो न कोयल मधुर गान क्यों ll

फागुनी भी हवाएं लुभाए न अब l
वो न सावन के झूले फुहारे न क्यों ll

साथ रहता नहीं कोई कुनवा यहां l
गाय- गोबर से घर भी लिपाए न क्यों ll

पेड़ जामुन के होते सभी के रहे l
होरी धनिया के बच्चे भि आए न क्यों ll

आम बिकने लगे खेत बटने लगे l
बाड रिश्तो में कोई लगाएंगे न क्यों ll

संजय सिंह “सलिल”
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश l

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