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8 Aug 2018 · 2 min read

हाय यह मोटापा ! (हास्य -व्यंग्य कविता)

जाने कैसी समस्या है यह ,

जो किसी तरह मिटती नहीं.

कर ले लाख कोशिश मगर ,

चर्बी है की घटती ही नहीं.

लज़ीज़ पकवानों केजो हम आशिक ,

क्या करें दिल है की मानता नहीं,

उस पर चटोरी जुबां का अंकुश ,

हम इससे छुट सकते नहीं.

अगर कोशिश भी करते है ,

की हो जाएँ हम इनसे बेज़ार .पर

ओट्स ,रागी , बेस्वाद सब्जियां,

और भूसे की रोटी लगे बेकार .

दिल को बहलाना पड़े इन्हीं से ,

चूँकि खाए बिना गुज़ारा नहीं,

व्रत -उपवास या योगा व् कसरत ,

किया बहुत मगर कोई फायदा नहीं.

जितनी भी बार शुरू किया मुहीम ,

जाने कितनी बार प्रयास किया .

कितने सालों से खाते आये कसम ,

मगर इस चटोरी जुबा ने हताश किया.

यह ज़माना करता आया है सदा मज़ाक ,

हम जैसे मजबूर बेबस , लाचारों को .

मगर कोई ना जाने हमारी पीड़ा ,

पूछेगा भी कौन हम बेचारों को .

कोई भी मनचाही ड्रेस पहनो जचती नहीं,

बुरी लगती है बहुत अपनी बेडौल फिगर.

ख्यालों में रहकर अक्सर सोचते हैं, काश !

हमारी भी होती शिल्पा ,व् माधुरी जैसी फिगर .

दोस्त करना चाहते हैं हमें उत्साहित ,

इसीलिए दिया करते है हमें व्याख्यान .

समझकर भी ना समझे नियत खोटी ,

जब सामने आ जाये जब लज़ीज़ पकवान .

चलो ! हम एक पल के लिए हम

कर भी दें इन आफतों को दर किनार .

मगर तब क्या करें ,जब कोई किसी ख़ुशी के

मौके पर लगा दे घर पर मिठाइयों का अम्बार ?.

हमारे मोटापे की वजह से मेरे अजीजों को ,

लगी रहती है बहुत हमारी बहुत फिकर .

चलते है वोह साये कीतरह पीछे -पीछे ,

चूँकि डगमगाते हुए हमारे क़दमों से ,

इन्हें लगता है भयंकर डर.

हमारा तो यह हाल है की ,

कुछ कहना है मुश्किल .

उठ गए तो बैठना मुश्किल .

और गर बैठ गए तो उठना मुश्किल .

हाय यह मजबूरियां ,यह दीवानापन ,

कैसे दूर करें यह अपना मोटापापन.?

जन्म के साथ ही जो विरासत में मिला ,

महसूस होता है मौत के साथ ही होगा दफन .

जो इस जन्म मे ना हुई पूरी आशा ,

शायद अगले जन्म में पूरी हो जाये .

यह जीवन तो कर दिया मोटापे ने बेकार ,

अगले जन्म मे बॉडी fit & slim मिल जाये.

! आमीन !

Language: Hindi
2 Likes · 4 Comments · 2833 Views
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