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27 Dec 2017 · 1 min read

07-रीते हुए दिन ।

यादें बन के उभरने लगे हैं ,बीते हुए दिन ।
अब जुम्म्स नहीं रह गई है, रीते हुए दिन ।।

जवान था जिस्म तब तूफ़ान सी ताक़त थी
अब गुजर रहे हैं , यादों को पीते हुए दिन ।।

महसूस नहीं कभी ,तपन कैसी ,शर्दी क्या ?
गुजरते चले गए वो, यों ही जीते हुए दिन ।।

जोड़ते गये अरमानों की बुलंदियां हर रोज
कभी वो बक़्त ,कभी वो पल ,छींटे हुए दिन।।

मस्तक पे परछाइयाँ नख्श बनाने में जुटी हैं
अब फ़िकर हो रही है ,की पलीतें हुए दिन।।

एक पल को घूम सा जाता हूँ पाल”साहब”में
उधेड़ बुन में व्यस्त हैं ,अब ये सींते हुए दिन ।।

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