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5 Apr 2021 · 1 min read

?ग़ज़ल?

??ग़ज़ल??

मीटर-1222/1222/1222/1222

जिन्हें चाहें दिलो-जां से वही दिल लूट जाते हैं
हसीं मंज़र हमेशा क्यों नज़र से छूट जाते हैं

तराशें हम ख़ुदी को इस तरह से हों ज़मीं पत्थर
यहाँ शीशे खरोचों से सुना है टूट जाते हैं

तवाज़ुन हो ख़ुशी ग़म में बना फ़ितरत यहाँ ऐसी
हवा ज़्यादा भरे पहले गुब्बारे फूट जाते हैं

??आर.एस.’प्रीतम’??

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