? ” प्रेम एक खुबसुरती ” ?
हेलो किट्टू ❗
ये घटना है अगस्त 2018 कि ,
हुआ यूं कि आज मैं दोस्त के साथ उसको लेपटॉप खरीदवाने गई । मेरे लिए तो सभी दोस्त एक समान है अर्थात उनके प्रति मेरा प्रेम भी एक समान है । जिस प्रकार प्रकाश की परछाई नहीं होती उसी के भांति मेरे हृदय में जो प्रेम वास करता है उसकी कोई परछाई नहीं है ।
मेरे लिए प्रेम का अर्थ लिंग ,धर्म या रंग – रूप देखकर नहीं बदलता न ही हालात देख कर बदलता है । वो बात अलग है कि आज के नए दौर में कोई मेरे प्रेम को समझ नहीं पाया । समझे भी क्यों ? क्योंकि मैंने तो कभी समझाना ही नहीं चाहा ।
आज बहुत ही हास्य कोटि की एक घटना हुई । खरीदारी के बाद एक लड़की ( सेल्सगर्ल ) ई.एम.आई. के फार्म के साथ एक सुंदर लिखावट के साथ औपचारिक पत्र भी लाई । उसकी लिखावट सच में बहुत ही सुन्दर थी उसकी लिखावट प्रशंसा की हकदार थीं ।
तभी मेरे मित्र ने उसकी लड़की की प्रशंसा करते हुए मुझसे कहा ” ज्योति तुम्हें ईर्ष्या हो रही है ना उस लड़की से ? ”
मैंने भी मुस्कुराते हुए कहां ” नहीं ” ।
मेरे मित्र ने कहा ” तुम्हारे साथ होते हुए भी मैं दुसरी लड़की की प्रशंसा कर रहा हूं , तुम्हें कोई आपत्ती नही है ?
( मन ही मन बहुत हंसी और सोचा कि ” मैं जिस दोस्त के साथ हूं जो कि एक लड़का है वो मुझसे प्रेम करने का दावा भी करता है , क्या इसे सच में प्रेम का अर्थ पता भी है या फिर वो मेरे प्रति आकर्षित होने को ही प्रेम समझता है । ” )
मैंने कुछ समय पश्चात् उत्तर दिया ” ( बड़े ही कम शब्दों में ) जिन नजरों को खुबसूरती देखने की आदत हो वो अपना वास्तविक स्वभाव कभी नहीं छोड़ती । ”
फिर हम अपने – अपने घर की तरफ निकल चलें ।
रास्ते भर मैं यही सोचती रह गई कि ” मैंने जो कम शब्दों में खुबसूरत नज़रिया अर्थात प्रेम की व्याख्या की वो मेरा दोस्त समझा होगा ? ”
मेरा अनुभव :-
” प्रेम ही खुबसूरती हैं और खुबसूरती भी प्रेम है । ”
प्रेम कोई भावना नहीं यह हमारा व्यवहार है जो हमारे शुद्ध विचार का नेतृत्व करता है । जो हमारा व्यवहार है उसी से हमारे विचार का पता चलता है परन्तु जो विचार में नहीं उसे व्यवहार में लाना पूर्णतः असंभव है ।
हम केवल एक व्यक्ति या वस्तु से प्रेम नहीं कर सकते हैं । यदि हमारा आत्मा स्वरूप हृदय प्रेम के सही अर्थ को अनुभव करता है तो हमारा प्रेम सीमित नहीं रह सकता है ।
जितना प्रेम हम एक मित्र जो लड़की है उससे करते हैं , उतना ही प्रेम मित्र जो लड़का है उससे कर सकते हैं , उतना ही प्रेम हम माता-पिता से , भाई – बहन से , बच्चो से , शिक्षक – शिक्षिका से , अपने अन्य सभी रिश्तेदारों से यहां तक की उतना ही प्रेम हम अपने जीवन साथी से भी कर सकते हैं ।
अंततः ” जरूरतें अलग-अलग होती है , प्रेम नहीं ! ”
? धन्यवाद ?
✍️ ज्योति ✍️
नई दिल्ली