,?ठण्ड का बढ़ता प्रकोप?
ठण्ड का बढ़ता प्रकोप
?गरीबी और बदनसीबी ने सताया,
अपनो ने ही अपनो को ठुकराया ,
उस बच्चे की मासूमियत पर,
खुदा को तरस न आया।
?न छत मिली सर पर
न अपनो का सहारा पाया,
आसमाँ से गिरता कोहरा,
ठिठुरती ठण्ड ने भी सताया।
?माँ के मरते ही आँसू ओ ने तार तार रुलाया,
मांगा हाथ फैलाकर अमीरों ने ठुकराया।
हालात बद से बत्तर हुए उसके,
उसकी मुफलिसी पर रहम किसी ने न खाया।
?रिश्ते नाते कोई काम न आया,,
भूखऔर लाचारी ने हर वक्त तरसाया,
जमी पर सोने को मजबूर हो आया।
बदन पर फ़टे वस्त्र देख वो खुदबखुद लज्जाया।
,?अमीरों ने दौलत के नशे में चूर खुद को हर्षाया,
कोई बच्चो और बूढो की जरूरतों को पहचान न पाया,
कोई क्यूँ गरीबों के गमो में हमदर्द न बन पाया,
सड़क किनारें ठंड से ठिठुरते को कोई चादर ओढा न पाया
?क्यूँ नही आती इस नन्नी से जान पर दया,
क्या खुदा ने इंसान की इंशानियत को मार गिराया,
बच्चो ने भगवान का रूप है पाया,
क्यूँ इंसान ने इंसान को गले नही लगाया।
?सोनू ने गरीबों और बेबस,
ठण्ड से ठिठुरते लोगो की मदद करने को कदम बढ़ाया,
घर मे रखी पुरानी स्वेटर को भेंट कर गरीबों को गले लगाया।
गायत्री सोनू जैन मन्दसौर