?सरस्वती वंदना?
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हो नीज मन मे भक्ति श्रद्धा
ना हम से कोई अपकार हो,
चलूं सत्य के पथ सदा ही मैं
ऐसा ही सरल स्वभाव हो,
हैं द्वारे खड़े तेरे हे माता
बस इतना सा वरदान दे,
हे हंस वाहिनी मातु शारदे
बुद्धि का भंडार दे।
स्वर अमृत हो कंठ कोकिला
शीतल सुमधुर सुव्यवहार हो
कभी करूं अहित ना किसी का मैं
मन में ऐसा विश्वास हो,
अब आश लगाये खड़े हैं माँ
तूं बुद्धि विवेक सवांर दे
हे हंस वाहिनी मातु शारदे
बुद्धि का भंडार दे।
नव गति नई लय तान मिले
इस जीवन में सम्मान मिले
ना धर्म के पथ से अलग रहूँ
ऐसा बल पौरुष आज मिले
ऐही जिज्ञासा मेरे मन की माँ
मेरे मन को सुखद संसार दे
हे हंस वाहिनी मातु शारदे
बुद्धि का भंडार दे।
लव कुश ध्रुव प्रहलाद सा बनकर
मानवता का त्रास हरे हम
साहस शील हृदय में भरकर
दृढ़ निश्चय कर आगे बढें हम
हो ना कोई बाधा पथ में माँ
मेर जीवन को तूं आधार दे
हे हंस वाहिनी मातु शारदे
बुद्धि का भंडार दे।
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©®पं.संजीव शुक्ल “सचिन”