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26 Nov 2017 · 1 min read

✍✍याद= आत्मा की पुकार या मोह की दीवार✍✍

छिड़ गई छिड़ गई वो बात जो मुझे याद न थी,
आ गई उनकी वो याद जो मुझे याद न थी।।1।।
फाँसला-ए-ग़म है बड़े दूर का हम में उनमें,
फिर ख़ुशी उठी मेरे ज़हन में,जो मुझे याद न थी।।2।।
दीदार तो होगा उनसे, रंजिश से ही सही,
ये तो वक़्त की बात है जो मुझे याद न थी।।3।।
सितम कहूँ या कहूँ मोहब्बत, है जो कुछ उनका मुझ पर,
है सब एक दीवार का चक्कर, जो मुझे याद न थी।।4।।
हक़ है जो मेरा वो निभाऊँगा मरते दम तक,
कभी न कभी तो आएगी मेरी याद, जो मुझे याद न थी।।5।।
माज़ी में ही खो जाएगा क्या तेरा ‘अभिषेक’ ?
रफ़ीक़ ही बन कर,कर ले बात जो मुझे याद न थी।।6।।
$$$अभिषेक पाराशर$$$

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