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17 Mar 2018 · 1 min read

✍✍भई,शुद्ध वायु अब नहीं शहर में✍✍

वायु हुई विष से भी विषैली,
साँसों में घुसती मृत्यु की थैली,
प्रकृति बदलता पागल यह नर,
बुरे नतीज़े न सोचे अक्सर,
कैसे जिएंगे मृत्यु के घर में,
भई,शुद्ध वायु अब नहीं शहर में।।1।।
चारों ओर विषाक्त धुआँ ने घेरा,
धुन्ध, रसायन ने डाला है डेरा,
कब तक जीएंगे ऐसे मरकर,
चिन्तन हेतु निकालो अवसर,
कैसे जिएंगे मृत्यु के घर में,
भई,शुद्ध वायु अब नहीं शहर में।।2।।
पॉलीथिन रखता हर ठेला,
कूड़े का लगता है मेला,
शोचनीय हैं, परिणाम भयंकर,
मनु की सन्तान निकालों अवसर,
कैसे जिएंगे मृत्यु के घर में,
भई,शुद्ध वायु अब नहीं शहर में।।3।।
क्रीम,पाउडर लगाता हर कोई,
पर वृक्षारोपण से बचता क्यों कोई?
जो वायु दिलाते पावन सर-सर,
अभी समय है निकालो अवसर,
कैसे जिएंगे मृत्यु के घर में,
भई,शुद्ध वायु अब नहीं शहर में।।4।।
रगड़ रगड़ के खूब नहाना,
पानी को व्यर्थ ही बहाना,
वृक्ष मूल में, जल बरसे झर-झर,
सोचे न, नर हुआ जानवर,
कैसे जिएंगे मृत्यु के घर में,
भई,शुद्ध वायु अब नहीं शहर में।।5।।
चलो चले अब नियम बना लें,
वृक्षारोपण धर्म बना लें,
अधिक न सोचकर निकालें अवसर,
वृक्ष लगा लें हर घर हर घर,
कैसे जिएंगे मृत्यु के घर में,
भई,शुद्ध वायु अब नहीं शहर में।।6।।

:::अभिषेक पाराशर:::

Language: Hindi
529 Views
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