☆~ जीवन की अनुभूति ~☆
जब मैं सोचता हूँ !
केवल अपने लिए ,
परिवार के लिए ,
तब !
हर कर्म करता हूं ,
जीवन भर पिसता हूँ ,
फिर भी
नही मिलता मन को तृप्ति ;
नहीं मिलता शारीरिक विश्राम ।
शेष रह जाती है –
आखिरी सांस तक
सांसारिक खुशियों की कसक ,
मृग मारिचिका की तरह ।
× × × × × × × × × × × × × × ×
जब मैं सोचता हूँ !
अपने से इतर पड़ोसी के लिए ,
समाज के लिए ,
संसार के लिए ,
तब !
अधूरे मन से ही सही
जो कुछ भी
आधा – अधूरा कर्म करता हूं ,
पता नहीं क्यों और कैसे ?
पूर्णता का आभास करता हूं
कुछ अधिक पाने की
रहती नही लालसा
और नहीं ही
प्रतिकार की अभिलाषा ।
× × × × × × × × × × × ×
जब मैं सोचता हूँ !
यदा – कदा
मैं हूँ कौन ?
क्यों है मेरा अस्तित्व ?
उत्तर खोजता हूँ ,
स्वयं को तलाशता हूँ –
अपने ही अंतस में ,
तब !
हो जाता हूँ व्यग्र ,
मेरा अस्तित्व है ही कहां ?
जब दूसरे के अंतस में
झांकता हूँ ,
अपनी तरह
उनको भी पाता हूँ ।
फिर क्यों कामना करता हूँ ?
सांसारिक सुखों की !
क्यों लालसा करता हूँ ?
शारीरिक सौन्दर्य की !
इन्ही प्रश्न और उत्तरों के बीच
मुक्ति की इच्छा करता हूँ –
आदि से अंतत तक ।
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~~~~ ईश्वर दयाल जायसवाल ;
संयोजक – अदबी विचार मंच ;
टांडा – अंबेडकर नगर ( उ.प्र. ) ।
{ संपर्क नं. – 7408320246 }