●निर्झर अपना मधुर राग सुना रहे●
◆निर्झर अपना मधुर राग सुना रहे◆
पाषाणों को चीर पथ अपना बना रहे,,
कलकल की ध्वनि से,,
निर्झर मधुर राग सुना रहे।
चहु ओर हरियाली चादर,,
वसुंधरा को ओढाते जा रहे,,
प्यासे पंथी को नीर अपना पिला रहे।
आकर्षक सौंदर्य से लोगो को,,
निर्झर लुभा रहे,,,
गिर गिर के ऊँचे गिरी से,,
बिजली पैदा कर रहे।
भवरों तितलियां भी निर्झर संग,,
क्रीड़ा कर रहे,,
जलधारा की भांति,,
स्वच्छ विचार मन मे तैर रहे।
फ़ुलो और कलियां मिलकर ,,
फिजा को महका रहे,,
अम्बर को धरती पर आने का,,
पैगाम वो दे रहे।
गायत्री सोनू जैन