Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
30 Aug 2016 · 3 min read

​साहित्य सृजन में फेसबुक की भूमिका ✍✍✍✍✍✍✍✍✍✍✍✍✍✍

मन के भावों ,विचारों का शब्दों में संगुम्फन असम्भव नहीं तो दुरूह कार्य तो है ही । लेखन चाहे गध हो या पध अथवा अन्य कोई विधा । समाज से दूर शून्य में न कल्पित है न उसको लिखा जा सकता है क्योंकि
साहित्य समाजस्य दर्पणम्
———————————–
लेखक हो या कवि , हमेशा अपने आसपास जिसे समाज कहते है की घटनाओं से प्रभावित होता है उनको ही शब्दों में कलमबद्ध करता है क्योंकि
“देख तुझे रोता ,दिल भी मेरा रोता
—————————————–
समाज की हर विसंगति से रूबरू होना ही युगधर्म और कवि कर्म है वो साहित्य को समाज का भास कराता रहे । समाज की हर वेदना ही साहित्य की वेदना है ।

लेखन :

स्वान्त सुखाय होने के साथ लेखन समाज की अच्छाई बुराईयों को छूता है मन मे जो अकुलाहट होती है वो शब्दों में मुखर हो जाती है लेखनी खुद बखुद चलने लगती है समाज एवं
हर पक्ष समाज का भोगने के के बाद समाज लेखनी की आवश्यकता बन जाता है ।

फेसबुक पर अनेक साहित्यिक ग्रुप है जो साहित्य सेवा कर रहे है और निरन्तर साहित्य सेवा के लिए अग्रसर है ।
फेसबुक पर कई समूह लेखन में सुधार लाते है चाहे वो काव्योदय हो या युवा उत्कृष्ट साहित्यिक मंच या मुक्तक लोक या कवितालोक ,अधूरा मुक्तक या अनछुए जज्बात ।सभी अपने – अपने तरीके से उत्कृष्टता की ओर अग्रसर है साहित्य क्षेत्र में अपने स्तर से कार्यरत है । आभासी दुनियाँ से हट नवोदित कवियों , जिन्होंने ने प्रथम सीढ़ी पर कदम रखा है को मंच प्रदान करने में इन ग्रुपों की भूमिका है । समय -समय पर इन ग्रुप्स के भिन्न शहरों में कार्यक्रम भी होते है । इन ग्रुप्स की बुक्स भी प्रकाशित होती है जिसमें रचनाकारों की कृतियों को स्थान मिलता है ।
लेखिका चूँकि पिछले पाँच वर्ष से फेस बुक यूजर है अतः फेसबुक पर अनेक ग्रुप से जुडी हुई है ग्रुप्स के दैनिक कार्यक्रम लेखनी की धार को पैना करने का काम करते है साथ ही रचनाकर्ता की सोच को जमीन प्रदान करते है । हर वर्ग का व्यक्ति चाहे वह किसी भी व्यवसाय में हो फेसबुक से जुड़ा हुआ है ।
‘दैनिक कार्यक्रम के अन्तर्गत हर ग्रुप में दिन के अनुसार अलग -अलग कार्यक्रम है जैसे शब्द युग्म (पानी -पत्ता), पारम्परिक छन्द पर लिखना जैसे घनाक्षरी या मापनी के आधार पर लिखना । इसके अतिरिक्त कक्षा संचालन भी ग्रुप्स की अपनी विशेषताएँ हैं इन साहित्यिक कक्षाओं में साहित्य की बारीकियों को बखूबी सिखाया जाता है ।
इन कुछ ग्रूप्स साय फिलवदीह कार्यक्रम भी चलता है जिसमें लोग एक दिये गये मिसरे के आधार पर दी गयी बहर में तीव्रगामी गति से लिखते है । “रात कब आई , कब गई ” का भी पता नहीं लगता ।
इतने सारे ग्रुप्स है कि डॉटा नहीं समेटा जा सकता लेकिन फेसबुक का सबसे ज्यादा लोगों का सबसे बड़ा ग्रुप जो “काव्योदय” कहा जाता है ।
लेखिका की बात फेसबुक पर अति सक्रीय ग्रुप “काव्योदय “के पुरोधा डॉ उदय मणि और श्री कपिल मणि से बात हुई । बात-चीत के दौरान पता लगा कि इस ग्रुप में डेढ़ लाख की आवादी है जो मणि बन्धुओं के कुशल निर्देशन में निरंतर साहित्य के गगन को छूने को अग्रसर है । छ: बैच में लगभग 25 सौ नवांकुर प्रशिक्षित हो चुके है । अब तक 450 फिलवदीह हो चुकी है जिसमें 42 हजार गजल बनी एवं अधिकतम फिलवदीह 22 हजार कमेन्टस की रही । कई साहित्यिक कलाकार विभिन्न अखबारों की शोभा बन चुके है जैसे कुमुद , अरुण शुक्ला , पूनम प्रकाश । इतनी बडी संख्या में संभालने के लिए तीस लोंगों का कुशल कार्यकारी मण्डल है निहायत जिम्मेदार पूजा बंसल , पूनम पान्डेय मेरुदण्ड का कार्य करते है ।

यह लेखिका का “साहित्य सृजन में फेसबुक की भूमिका “”के सन्दर्भ में मेरा तुच्छ प्रयास था।

डॉ मधु त्रिवेदी

Language: Hindi
Tag: लेख
68 Likes · 447 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from DR.MDHU TRIVEDI
View all
You may also like:
#आह्वान
#आह्वान
*Author प्रणय प्रभात*
फिर जिंदगी ने दम तोड़ा है
फिर जिंदगी ने दम तोड़ा है
Smriti Singh
बेवफाई मुझसे करके तुम
बेवफाई मुझसे करके तुम
gurudeenverma198
चिड़िया रानी
चिड़िया रानी
नन्दलाल सुथार "राही"
मेरे मित्र के प्रेम अनुभव के लिए कुछ लिखा है  जब उसकी प्रेमि
मेरे मित्र के प्रेम अनुभव के लिए कुछ लिखा है जब उसकी प्रेमि
पूर्वार्थ
कहें किसे क्या आजकल, सब मर्जी के मीत ।
कहें किसे क्या आजकल, सब मर्जी के मीत ।
sushil sarna
जिन्दगी है की अब सम्हाली ही नहीं जाती है ।
जिन्दगी है की अब सम्हाली ही नहीं जाती है ।
Buddha Prakash
वर्षा के दिन आए
वर्षा के दिन आए
Dr. Pradeep Kumar Sharma
इतना क्यों व्यस्त हो तुम
इतना क्यों व्यस्त हो तुम
Shiv kumar Barman
वह नही समझ पायेगा कि
वह नही समझ पायेगा कि
Dheerja Sharma
आओ न! बचपन की छुट्टी मनाएं
आओ न! बचपन की छुट्टी मनाएं
डॉ० रोहित कौशिक
स्कूल कॉलेज
स्कूल कॉलेज
RAKESH RAKESH
कर्म परायण लोग कर्म भूल गए हैं
कर्म परायण लोग कर्म भूल गए हैं
प्रेमदास वसु सुरेखा
क्यूँ इतना झूठ बोलते हैं लोग
क्यूँ इतना झूठ बोलते हैं लोग
shabina. Naaz
भ्रम नेता का
भ्रम नेता का
Sanjay ' शून्य'
प्रेमी चील सरीखे होते हैं ;
प्रेमी चील सरीखे होते हैं ;
ब्रजनंदन कुमार 'विमल'
💐प्रेम कौतुक-173💐
💐प्रेम कौतुक-173💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
गरीबी……..
गरीबी……..
Awadhesh Kumar Singh
"निक्कू खरगोश"
Dr Meenu Poonia
दिल पर किसी का जोर नहीं होता,
दिल पर किसी का जोर नहीं होता,
Slok maurya "umang"
द्वितीय ब्रह्मचारिणी
द्वितीय ब्रह्मचारिणी
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
इससे ज़्यादा
इससे ज़्यादा
Dr fauzia Naseem shad
तेवरी आन्दोलन की साहित्यिक यात्रा *अनिल अनल
तेवरी आन्दोलन की साहित्यिक यात्रा *अनिल अनल
कवि रमेशराज
*घर-घर में झगड़े हुए, घर-घर होते क्लेश 【कुंडलिया】*
*घर-घर में झगड़े हुए, घर-घर होते क्लेश 【कुंडलिया】*
Ravi Prakash
कर दिया समर्पण सब कुछ तुम्हे प्रिय
कर दिया समर्पण सब कुछ तुम्हे प्रिय
Ram Krishan Rastogi
सुप्रभात
सुप्रभात
Arun B Jain
SuNo...
SuNo...
Vishal babu (vishu)
मत छोड़ो गॉंव
मत छोड़ो गॉंव
Dr. Kishan tandon kranti
गर्मी
गर्मी
Artist Sudhir Singh (सुधीरा)
कविता - नदी का वजूद
कविता - नदी का वजूद
Akib Javed
Loading...