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19 Feb 2018 · 1 min read

ज़िन्दगी

ज़िन्दगी ज़िन्दगी ज़िन्दगी
दर्द, आँसू, तड़प, बेबसी।

सेंकता ही रहा रोटियाँ
कुछ पकी कुछ जली अधजली।

भूख की देखकर के तड़प
हँस रही है खड़ी मुफ़लिसी।

ज़ख़्म इतने मिले हैं हमें
दर्द में बन गयी शाइरी।

बस मिली ठोकरें दर ब दर
काम आई नहीं सादगी।

चाँद तारे सभी रो रहे
ख़ुदकुशी कर चुकी चाँदनी।

इक़ “परिंदा” गिरा चीखकर
देख लो क़ातिलों की हँसी।

पंकज शर्मा “परिन्दा”

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