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11 Feb 2017 · 1 min read

ज़िन्दगी एक सवाल

ज़िन्दगी एक सवाल बन जाती है
हर कदम पर एक इम्तहाँ बन जाती है
लावारिस लाश सी है ज़िन्दगी
जितना कोशिश करो सुलझाने की
उतनी और उलझती जाती है।
आइना भी धुंधला हो जाता है,समय के साथ
शक्ल में भी धुंधली काई सी चढ़ जाती है।
मश्क्कत करनी पड़ती है, अक्सर
खुद को सवांरने में,बेइंतहा
ज़िन्दगी भी कम पड़ जाती है
लगा रहता हूँ,दूसरों को मनाने की कोशिश में अक्सर
ज़िन्दगी भी खुद से दूर होती सी नझर आती है।
बैठ जाता हूं अक्सर, थककर
आशियाने में चंद सुकूँ की तलाश में। लेकिन
घिरा पाता हूं, खुद को ज़िन्दगी के जंजाल में।
जहां जब चाहे हँस लिया करते थे ,कभी बेवजह
आज ज़िन्दगी भी अब हंसने के अवसर और
बहाने ढूंढती नझर आती है।
बिक जाती है ज़िन्दगी अक्सर
इम्तिहानों में , खुद को साबित करते करते
अब रूह भी घुट घुट कर मरती जाती है।

भूपेन्द्र रावत
10।01।2017

Language: Hindi
1 Like · 405 Views
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