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6 Jul 2020 · 1 min read

ज़िंदगी

करते हैं शिक़वे शिकायतें सभी उम्र भर
फिर भी कितनी गुलज़ार है ये ज़िंदगी

शुक्रगुज़ार हैं दो रोज़ा जीस्त के हम सभी
वक़्त की कैद से आजाद नहीं है ये ज़िंदगी

है लम्हे अंधेरे के तो कभी उजाले का साथ
साथ वक़्त के कितनी हसीं है ये ज़िंदगी

देना पड़ता है इम्तेहान हर लम्हा इंसान को
वक़्त के नाजुक धागे से बंधी है ये ज़िंदगी

नहीं समझ पाया है कोई फ़लसफ़ा इसका
अनसुलझी पहेली ही ‘ सुधीर ‘ है ये ज़िंदगी…….

3 Likes · 2 Comments · 364 Views
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