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21 Oct 2019 · 1 min read

जज़्बा

महफिल की शमा न बनो।
रोशन रहो जशने चिरागाँ की तरह ।
ज़माले सुखन न बनो जमाने का सुखन बनो।
ना भटको सराबो मे पशेमाँ हो कर हयाते सफर का सैलाबे नूर बनो।
न तराशो अपना अक्स इन पत्थरों मे
दौरे इर्तिका का शाहकार बनो।
गर गुरे़जा़ करो परततिश से पर मुनकिर् भी न बनो।

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