ग़ज़ल
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२२१ २१२१ १ २२१ २१२
यूँ आप नेक-नीयत, सुलतान हो गए
सारे हर्फ किताब के, आसान हो गए
समझे नहीं जिसे हम, गुमनाम लोग वो
हक़ छीन के हमी से , परेशान हो गए
कुनबा नहीं सिखा सकता बैर- दुश्मनी
नाहक ही लोग , हिंदु-मुसलमान हो गए
सहमे हुए जिसे ,समझा करते बारहा
बेशर्म- लोग जाहिल – बदजुबान हो गए
एक हूक सी उठी रहती,सीने में हरदम
बाजार में पटक दिए, सामान हो गए
एक पुल मिला देता हमको, आप टूटकर
रिश्तों की ओट आप, दरमियान हो गए
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2.
२१२२ १२१२ २२
सुशील यादव
तेरी दुनिया नई नई है क्या
रात रोके कभी, रुकी है क्या
बदलते रहते हो,मिजाज अपने
सुधर जाने से, दुश्मनी है क्या
जादु-टोना कभी-कभी चलता
सोच हरदम,यों चौकती है क्या
तीरगी , तीर ही चला लेते
पास कहने को, रौशनी है क्या
सर्द मौसम, अभी-अभी गुजरा
बर्फ दुरुस्त कहीं जमी है क्या
सुशील यादव
४.१२.१५