ग़ज़ल
फसादों से उख़ुवत की जड़ें कमज़ोर होती हैं।
बग़ावत से हुकूमत की जड़ें कमज़ोर होती हैं।
गिले,शिकवे,शिकायत,एक हद तक ठीक है लेकिन।
सिवा हो तो मोहब्बत की जड़ें कमज़ोर होती हैं।
फ़लक से तुम ज़मीं पर आओगे मग़रूर होते ही।
ये मत भूलो के शोहरत की जड़ें कमज़ोर होती हैं।
दुवाएं बे असर होती हैं रीज़्के बद को खाने से।
दिखावे से इबादत की जड़ें कमज़ोर होती हैं।
मुसलसल अश्क का बहना मियाँ अच्छा नहीं होता।
नमी हो तो इमारत की जड़ें कमज़ोर होती हैं।
ये फ़िर्क़ा वारीयत अच्छी नहीं होती मेरे भाई।
इसी से ही तो उम्मत की जड़ें कमज़ोर होती हैं।
ये काले कोट वाले जज के जो इन्साफ परवर थे।
उन्ही से अब अदालत की जड़ें कमज़ोर होती हैं।
मोहसिन आफ़ताब केलापुरी