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6 Feb 2021 · 1 min read

ग़ज़ल

ग़ज़ल
काफ़िया-ईत
रदीफ़- की।
2122 2122 2122 212
सनसनाती कुछ हवाएं चल रही हैं शीत की।
आ रही है याद हमको आज बिछड़े मीत की।

मन लुभाती हैं सदा महकी फिज़ाएँ आज भी
रात पूनम की सुनाए कुछ कहानी प्रीत की।

अंग मेरे ज़ो लगी ये धूप कमसिन गुनगुनी
कह रही कोई कहानी आज मुझसे ज़ीत की।

साथ जो तेरे लिखे थे प्यार के नग़मे कहीं
आज तनहा गा रहा मैं पंक्ति फिर से गीत की।

सर्द मौसम में अकेला मैं तड़पता हूँ यहाँ
बेरहम कुछ तो ख़बर ले आज तू मनमीत की।

अदम्य

2 Likes · 1 Comment · 218 Views
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