ग़ज़ल
बेसुकूनी, बेख़याली बा-अदब बख़्शा
जिन्दगी तूने हमे क्या क्या न हक़ बख़्शा
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मेरी आज़ादी है मानिन्द उस परिन्दे के
पहले जिसके पर हैं कतरे,फिर फ़लक़ बख़्शा
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फ़र्ज़ की दीवार चुन दी चारसू मेरे
वक्त निकला हाथ से जब तब है हक़ बख़्शा
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ये मोहब्बत, ये वफाएँ निकले सब झूठे
जब यक़ीं चाहा कभी तब उसने शक़ बख़्शा
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मैने जन्नत कर दिया आशियाँ जिसका
उसने ईनामी मे मुझको ये दोजख़ बख़्शा
निकीपुष्कर-
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