ग़ज़ल
2122. 2122. 2122.
ग़ज़ल
तुमसे अब मै दूर जाना चाहता हूँ
बायदा अपना निभाना चाहता हूँ
दर्द की इंत्हा हुई है जाने क्यूंकर
दुख तुझे अपना बताना चाहता हूँ
मंजिलों से भटका हूँ मैं भी तो अक्सर
रास्ता खुद को दिखाना चाहता हूँ
ठोकरें खाई हैं मैंने हर कदम पर
पीर झेली जो भुलाना चाहता हूँ
जख्म जो भी खाए थे मैंने खुदाया
दर तेरे आकर दिखाना चाहता हूँ
काम भी तो मैं नहीं आया किसी के
नेक मैं भी कुछ कमाना चाहता हूँ
दुनिया बेबस है बहुत ही आजकल तो
दर्द दुनिया का मिटाना चाहता हूँ
आसमां पे जाके अपने बास्ते मैं
घर नया कोई बनाना चाहता हूँ
अच्छे हैं सब और अपने ही हैं सारे
दिल से नफरत अब मिटाना चाहता हूँ
सुरेश भारद्वाज निराश
धर्मशाला हिप्र