ग़ज़ल
ग़ज़ल
आँसू हमने कोई भी बहाया नहीं
दर्द अपना जहां को बताया नहीं
हमने दुनिया को कुछ भी जताया नहीं
जख्म अपना किसी को दिखाया नहीं
आया सैलाब इक दर्द का था मगर
मुझको क्यूँकर किसी ने बचाया नहीं
मौत सी नींद गहरी मुझे आ गयी
जाने क्यूँ था किसी ने उठाया नहीं
पाप पुन का हवाला दिया लोगों ने
पाप मैंने तो कोई कमाया नहीं
लोग हिस्से का मेरा लगे लूटने
हिस्से मेरे है कुछ भी तो आया नहीं
दुनिया क्यूँ दूर मुझसे है जाने लगी
मैंने दिल तो किसी का दुखाया नहीं
हाथ जोड़े मै सबसे रहा मांगता
मेरा हक तो किसी ने दिलाया नहीं
चाँदनी रात है मुझको चुभने लगी
चाँद छत पे कभी मेरी आया नहीं
मेरे हिस्से का सूरज भी तुम खा गये
चाँद का भी मिला मुझको साया नहीं
मेरा जीवन है सारा ये तेरे लिए
भेद कोई तो तुमसे छुपाया नहीं
बोली नदिया मिली जा के सागर से जब
मेरा अपना है तू सच पराया नहीं
गहरी साँसें हैं क्यूँ जाने चलने लगीं
तेरा दर तो अभी तक है आया नहीं
बस्ती जलने लगी सब रहे देखते
मेरा घर तो किसी ने बचाया नहीं
चाहता वो रहा दिल ही दिल में तुझे
उसको तूने गले से लगाया नही
सुरेश भारद्वाज निराश
धर्मशाला हिप्र