ग़ज़ल
नफ़रत
ग़ज़ल
नफ़रत की दीवारों को सदा सदा के लिये तोड़ना चाहती हूँ मैं।
भारतीयता औऱ संस्कृति का फ़ूल जग में महकाना चाहती हूँ मैं।
हिन्दू मुस्लिम के भेद को मिटाना चाहती हूँ मैं।
भारत की बेटी हूँ भारत का मान बढ़ाना चाहती हूँ मैं।
दुश्मनों का खुलकर सामना करना चाहती हूँ मैं।
आंतकियों के मंसूबों को ख़ाक में मिलाना चाहती हूँ मैं।।
उलझनें तो जिंदगी में बहुत है मेरे,
पर अपने हिन्द के लिए कुछ कर गुज़रना चाहती हूँ मैं।
मुश्किलों से घबराकर कभी घुटने टेकना नही चाहती हूँ मैं।
अपने लहू का कतरा कतरा मातृभूमि के लिये बहाना चाहती हूँ मैं।।।।
कुछ गद्दारों ने क्या हाल कर दिया हिंदुस्तान का मेरे,
उन जालिमों की नस्लों का नामों निशां मिटाना चाहती हूँ मैं।।।।
देश सेवा में लगे नोजवानों का हौसला बुलन्द करना चाहती हूँ मैं।
सीमा पार पाक को धूल चटाना चाहती हूँ मैं।।।।।
सोनू नही कोई मतलब किसी से भेद भाव करने से,
जातीयता के भेद को जड़ से उखाड़ना चाहती हूँ मैं ।
रचनाकार
गायत्री सोनू जैन
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