#ग़ज़ल-59
अरक़ान (बहर या छंद).
मफ़ऊलात.2221+2221+222
दिल में आ निकल तो फिर न जाओगे
अश्कों से फिसल तो फिर न जाओगे/1
लाखों हैं हसीं देखो जिधर भी तुम
गिरगिट-से बदल तो फिर न जाओगे/2
दिल आना किसी पर तो बड़ा अच्छा
धोखा दे मचल तो फिर न जाओगे/3
बादल-सा उमड़ बरसो सुहाएगा
करके शोर चल तो फिर न जाओगे/4
है आवाज़ मीठी सी शहद-जैसी
सुनने तुम ग़ज़ल तो फिर न जाओगे/5
आँखों में बसा सपने नये कल के
सपनों-से टहल तो फिर न जाओगे/6
है विश्वास खुद से भी कहीं ज़्यादा
टूटा गर कि कल तो फिर न जाओगे/7
प्रीतम की क़सम पत्थर लकीरें हैं
सुनके तुम बहल तो फिर न जाओगे/8
-आर.एस.’प्रीतम