#ग़ज़ल-62
मापनी..2122-2122-12122
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रदीफ़..देखा
क़ाफिया..क़सूर..सरूर..नूर..हुज़ूर..
ज़रूर.. गरूर..दूर
जान आँखों में ग़ज़ब का क़सूर देखा।
आज हमने प्यार का फिर सरूर देखा।।
(मत्ला)
झुक गई ये यूँ हया से नज़र न टूटी।
ये अदाओं का हसीं एक नूर देखा।।
प्यार की हसरत जवां थी निगाह जो की।
लब कसक पढ़कर सनम की हुज़ूर देखा।।
कह सका ना दिल कि आँखों हुआ बयां सब।
दिल बसाया प्यार सागर ज़रूर देखा।।
मिलन तो होता सदा है फिक्र न कर तू।
यार मिटता ये सदा है गरूर देखा।।
दिल न हो व्याकुल अ प्रीतम निडर बनो भी।
छोड़ दो तुम ये हया क्यों हमें हि दूर देखा।।
(मक़्ता)
मुक्तक
कब से खड़े थे तेरी राह में पलकें बिझाए।
करते इन्तज़ार हम आँखों में सूरत छिपाए।
तुम जो आए दिले-चमन में इश्क़े-फूल खिला,,
शुक्र है ईद के चाँद आज तुम नज़र तो आए।
-आर.एस.’प्रीतम’