ग़ज़ल होती है
जब जुड़ें दो दिलों के तार ग़ज़ल होती है
और होने पे भी तकरार ग़ज़ल होती है
धड़कनें शोर मचाती हैं हो के बेकाबू
आँखें हों जब किसी से चार ग़ज़ल होती है
जब कोई जान से भी प्यारा हमें है लगता
उसकी हर बात अदा यार ग़ज़ल होती है
आंच आती है अगर अपने वतन पर कोई
तो कलम बनती है तलवार ग़ज़ल होती है
जब हो जाती है मुहब्बत ये इबादत जैसी
सूफ़ियाना बड़ी अबरार ग़ज़ल होती है
दिल से ही तो सदा रहता है कलम का नाता
भावों को जब करे शृंगार ग़ज़ल होती है
गुदगुदाती है मुहब्बत की सुना कर बातें
‘अर्चना’ हो जहाँ पर प्यार ग़ज़ल होती है
18-01-2020
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद