ग़ज़ल:- वो दीवानी हुई मेरी..
1222/1222/1222/1222
वो दीवानी हुई मेरी मेरा ही नाम रटती है।
ए दुनिया चाहती उसको मगर वो मुझ पे मरती है।।
उसे जिसने भी देखा हो गया पागल या आवारा।
है दीवाना ये जग सारा दिलों पर राज करती है।
चले जब वो जमी पर तो ये झूमर झूम उठते हैं।
लवों पे जब तबस्सुम हो ए सरगम खुद ही बजती है।।
नज़र मिल जाए गर उससे फ़िज़ा मदमस्त हो जाए।
झुकें नज़रें अगर उसकी अदा जमकर बरसती है।।
मुझे है नाज़ ख़ुद पर जो मैं उसके दिल में रहता हूं।
मग़र है ‘कल्प’ बस उसका जो उसपे जाँ छिड़कती है।।
अरविंद राजपूत ‘कल्प’