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2 Sep 2018 · 1 min read

ग़ज़ल/पहली मुहब्बत का ख़याल है आज भी

बे मुक़म्मल इश्क़ का मलाल है आज भी
हमें पहली मुहब्बत का ख़याल है आज भी

दिल में हैं थोड़ी सी चुभन , मग़र ताज़गी भी
ताज़ा है सब बातें वो यादें क़माल हैं आज भी

ज़्यादा से ज़्यादा कुछ उम्र ही तो बदली होगी
सारें वादें जवां हैं, वो इरादें ज़माल हैं आज भी

तुम मेरे हो ही जाते ग़र क़यामत आ जाती क्या
सीने में है कसक लबों पर ये सवाल है आज भी

मैं कलियों को देखूँ या तेरी गलियों को देखूँ कभी
लगता है कि दरमियाँ ज़िंदा है वो साल आज भी

जानते हैं इश्क-ए-तासीर उम्रभर मिटा नहीं करती
क़ैद-ए-बामुशक्कत हैं तेरे ,हमपे जाल है आज भी

___अजय “अग्यार

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