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14 May 2017 · 1 min read

ग़ज़ल- सितमगर तो मेरा ही यार निकला

ग़ज़ल- सितमगर तो मेरा ही यार निकला
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
नहीं सोचा वही हर बार निकला
सितमगर तो मेरा ही यार निकला
◆◆◆
मुहब्बत से भरीं आँखें ये तेरी
लबों से क्यूँ मगर इंकार निकला
◆◆◆
मुझे मिलती यकीनन आज मंजिल
किनारा ही मगर मझधार निकला
◆◆◆
कलेजा ही हमारा फट गया ये
कि जबसे फूल है अंगार निकला
◆◆◆
हँसाता एक बन्दा जो सभी को
हकीकत में बहुत बेजार निकला
◆◆◆
जिसे ‘आकाश’ कहते थे भवँर है
वही बस एक है पतवार निकला

– आकाश महेशपुरी

1 Comment · 1024 Views
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