#ग़ज़ल-55
ईद का चाँद तू बन नहीं सुन ज़रा
ख़्वाब में ही सही मिल कहीं सुन ज़रा/1
याद मीठी बड़ी हो गई आपकी
स्वाद गुड़ से लगे है यहीं सुन ज़रा/2
हसरतें दीद की कम नहीं हैं मगर
योग हो बात बनती वहीं सुन ज़रा/3
चेहरे पर हँसी भेद दिल में बसा
दोगली नीतियाँ क्यों रहीं सुन ज़रा/4
सामने सच कहो ना करो चुगलियाँ
ना गिरोगे नज़र से जमीं सुन ज़रा/5
दूसरे का बुरा सोच हो ना भला
फ़लसफ़ा है ख़ुदा का हसीं सुन ज़रा/6
रूठना यार हमको सही ना लगे
मान प्रीतम तभी तो हमीं सुन ज़रा/7
-आर.एस.’प्रीतम’
अरक़ान ..फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
वज़्न…212 212 212 212
रदीफ़… सुन ज़रा
काफ़िया… नहीं कहीं यहीं वहीं रहीं जमीं हसीं हमीं