ग़ज़ल:- तुम ख्यालों में हो
बह्र-ए-मुतदारिक मुसम्मन सालिम
अरकान- फ़ा-इ-लुनx4
गम के बादल को सब झेलता मैं रहा।
तेरी यादों से बस खेलता मैं रहा।।
वो ख़फा है नही मानता दिल यही।
फिर वज़ह क्या हुई सोचता मैं रहा।।
अब पता चल गया वेबफ़ा वो नहीं।
बेवज़ह जाने क्यों कोसता मैं रहा।।
तुम खयालों में हो हर सवालों में हो।
तेरी यादों को बस रोकता मैं रहा।।
इस अँधेरे में बस एक किरण तुझसे है।
‘कल्प’ ज्योति के दम जूझता मैं रहा।।
:- अरविंद राजपूत ‘कल्प’