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17 Nov 2018 · 1 min read

ग़ज़ल/कुछ तो लिक्खा होगा ख़ुदा ने हमारी भी तक़दीर में

कुछ तो लिक्खा होगा ख़ुदा ने हमारी भी तक़दीर में
भर जाएगा रंग आहिस्ते आहिस्ते हमारी भी तस्वीर में

जब सारा जहाँ कहेगा आफ़रीन हमारे कारनामों पर
सारी दुनिया को होगी दिलचस्पी हमारी भी तहरीर में

अब बहुत हुआ ना पड़ने देंगे हम दरारें अपने ज़मीर में
इक लहज़ा होगा औऱ होगा वज़न हमारी भी तक़रीर में

हम ना रक्खेंगें वास्ता कभी नज़र किसी की जागीर में
ये क़लम होगी शमशीर आएंगी धारें हमारी भी शमशीर में

ख़ुद को अलैयदा रक्खेंगें ,हम भी इक क़ायदा रक्खेंगें
लगता है तभी कुछ आएगी आँच हमारी भी तासीर में

टूटे होंगे चाहे कितने हम ख़ुद को काफ़िर ना बनने देंगें
कभी ना कभी तो चमकेंगी फ़ानूस हमारी भी तामीर में

~अजय “अग्यार

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