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2 Mar 2020 · 1 min read

ग़ज़ल- ऐसी दीवार है दरमियाँ आजकल

ग़ज़ल- ऐसी दीवार है दरमियाँ आजकल
■■■■■■■■■■■■■■
ऐसी दीवार है दरमियाँ आजकल
वह सुनेगा नहीं सिसकियाँ आजकल

खेलता था कभी साथ मेरे वही
खोलता भी नहीं खिड़कियाँ आजकल

जिसने मुझको सिखाया सबक प्यार का
ढूँढता हूँ वही चिट्ठियाँ आजकल

अब तो आसान है चाँद का भी सफर
बढ़ गईं हैं मगर दूरियाँ आजकल

इश्क तो आग है दिल मेरा मोम है
यूँ गिराओ नहीं बिजलियाँ आजकल

मौज़ करने का “आकाश” मन है मगर
उम्र की पड़ गईं बेड़ियाँ आजकल

– आकाश महेशपुरी
दिनांक- 01/03/2020

6 Likes · 2 Comments · 721 Views
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