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18 Oct 2018 · 1 min read

ग़ज़ल:- एक बार मेरे यार का दीदार मिल गया..

बहरे मज़ारिअ मुसम्मन अख़रब मकफूफ़ मकफूफ़ महजूफ़
अरकान- मफ़ऊलु फ़ाइलातु मुफ़ाईलु.फ़ाइलुन
वजन- 221 2121 1221 212

अब दोस्ती निभाने का त्यौहार मिल गया।
भूला मैं ग़म सभी जो मेंरा यार मिल गया।।

खुशियाँ न ढूंढ इस जहाँ के रिश्ते नातों में।
जब यार दो गले मिले संसार मिल गया।।

हारा हूँ मैं तो अपनों से गैरों में दम कहाँ।
हर जंग जीत लूँगा तेरा प्यार मिल गया।।

दुनिया को जीत लेने का रखता हूँ मैं हुनर।
कर लूंगा दुनिया मुट्ठी में सालार मिल गया।।

परदेश में सगे है यहाँ यार ही मेरे।
नेमत है ‘कल्प’ यारों का परिवार मिल गया।।
✍? अरविंद राजपूत ‘कल्प’

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