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29 May 2017 · 1 min read

ग़ज़ल।हो गये अपने पराये लोग सब ।

ग़ज़ल । हो गये अपने पराये लोग सब ।

हो गये अपने पराये लोग सब ।
बेबसी मे है भुलाये लोग सब ।।

प्यार मे दिल को बिछाना था उन्हें ।
दर्द मे जबकि न आये लोग सब ।।

जीत मे खुशियों के बादल छा गये ।
हार मे नजरें चुराए लोग सब ।।

जख़्म मे मरहम लगाना था जिन्हें ।
बेरहम बन दिल दुखाये लोग सब ।।

वक्त की थी बन्दिशें मेरे लिये ।
वक्ते दर कहके न आये लोग सब ।।

अश्क़ के दरिया मे डूबा मै रहा ।
झूठ के आँसू बहाये लोग सब ।।

तोड़ के रश्में वफ़ा रकमिश, यहाँ ।
बेवज़ह वादे निभाये लोग सब ।।

राम केश मिश्र

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