ख़्वाब कबसे जरत रहल
एक दिन बइठल विजया कुछ ,चिंतन मनन करत रहल।
अबके लगन में मगन हो जयति, ई असरा मन मे धरत रहल।
घूम घूम के सबसे कहलीं खोज के द सुंदर मेहरी,
अब त लग जात हल्दी तन पे ,ई ख्वाब कबसे जरत रहल।
माई से रही रही के लडलीं ,की शादी ये लगनी में कई दे।
जवन कनबाली रखले बाटी,उ हमरे मंगनी में दई दे।
सबके होत रहल शादी त ,हियरा पर हर चलत रहल।
अब त लग जात हल्दी तन पे ,ई ख्वाब कबसे जरत रहल।
हम स्वर्णकार हई जरजरात ,पर जात पात से मतलब ना बा।
केहू आके ई कह दे शादी होइ , एहमे कौउनो गफलत ना बा।
हमरे शादी के खातिर, हमार भौजी भी बिनती करत रहल।
अब त लग जात हल्दी तन पे ,ई ख्वाब कबसे जरत रहल।
– सिद्धार्थ पांडेय