–ख़ुश न कर पाओगे–
एक कविता…खुश न कर पाओगे
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किसी के लिए मिट जाओ,मगर खुश न कर पाओगे।
भगवान से ही खुश न जो,अरे तुम क्या कर पाओगे।।
जमीं दो आसमां भी दो,चाहते मिटती नहीं कभी।
रुह भी दे दो चाहे तुम,पागल अंत कहलाओगे।।
अज़ीब दुनिया है सुनिए,ग़ज़ब के खेल सभी इसके।
दिल से खेलती है यार,कैसे दिल में बसाओगे।।
पलक झपके बदल जाए,लम्हा हँसा और रुलाए।
गिरगिट-से रंग बदलती,तुम कैसे समझ पाओगे।।
रिश्ते-नाते बह जाते,स्वार्थ के समन्दर में यहाँ।
प्रेम की कश्ती में छेद,तुम कैसे बचा पाओगे।।
रोकिए गर्म हवाओं को,क्रोधित हुए आती हैंं जो।
लिए अगर हो शांति-जल,यकीन से रोक पाओगे।।
प्रीत मेरी है सच्ची सुनले,महसूस कर दिल से प्रीतम।
देखोगे जिधर नज़र कर,सदा उधर मुझे पाओगे।।
राधेयश्याम बंगालिया “प्रीतम”
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