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21 Sep 2020 · 1 min read

ख़ुशी भी ढूँढू तो

ख़ुशी भी ढूँढू तो बस दर्द का सामान मिले
मुझे जो लोग मिले मुझसे परेशान मिले

मैं अपने शहर का मुआइना जब करने लगा
मुझे तो हर जगह सोते हुए दरबान मिले

कहीं भी कूच करूँ मिलती हैं ज़िन्दा लाशें
कभी-कभी ही तो ज़िन्दा हमें इंसान मिले

जिन खिलौनों के संग बचपन अपना बीता
आज देखा उन्हें तो सारे वो बे-जान मिले

वो जिनकी आदत थी तंज़ करना औरों पे
दाग-धब्बों से भरे उनके गिरेबान मिले

जब अपनी ज़िन्दग़ी की लाश को देखा मैंने
उसकी गर्दन पे मेरे हाथों के निशान मिले

जॉनी अहमद ‘क़ैस’

4 Likes · 1 Comment · 502 Views
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