क़सूर क्या था..
मुझे यूँ तन्हा छोड़कर ,
वो क्यों सता रहे हैं ।
मुक़्क़द्दर है ये मेरा,
कि अब बेबक्त याद आ रहे हैं ।
आख़िरी मंज़िल मानते थे,
कभी उस राह को अपना,
आज न करते हैं मुखड़ा,
उस तरफ़ गलती से अपना ।
रब नहीं सुनता है मेरी,
या बल मेरी आवाज में नहीं,
मुझे अब सुनता नहीं कोई,
और न परवाह है किसी को ।
वक़्त क्या भूले हैं वो अपना,
याद नहीं रहा कोई वायदा ।
क्यूँ तब ये मुझसे बोला था,
मिलूँगी हर रहगुज़र में तुमसे ।
दिया है नाम अब मुझको,
उन्होंने प्यार से बेवफ़ा ।
किया है काम क्या ऐसा ,
कभी नज़रों में आकर बता ।
मान भी लेता में शायद,
दिया है तूने मुझे तोहफ़ा ।
अगर तू कह देती आकर,
दिया है मैंने तुझे धोखा ।
अब तो रहता है मुझे अफ़सोस,
बस तेरे उन इल्ज़ामों का ।
क्या क़भी सोचा है तूने,
हाल क्या है तेरे दीवाने का ।
“आघात” मिला क्या तुझको,
तेरी उस नेक नियत का ।
कभी भी थाम लेता दामन,
तू उसकी ही पड़ौसन का ।
©®आर एस बौद्ध “आघात” ©®
8475001921