्विरह गीत
=====++++======++++======++++======
विरह वेदना
*************
कुछ देर ठहरती संग प्रिय, श्रृंगार तुम्हारा कर देता।
पायल, चूड़ी औ #गजरे से, मैं रूप तुम्हारा गढ देता।।
है प्रेम हृदय में भरा हुआ,तब काश की मैं दिखला पाता।
तुझे अंक पाश में भर प्रिय, लट तेरा मैं सुलझा पाता।।
जिस कारण मुझसे दूर प्रिय,तब शायद तुझको पढ लेता।
कुछ देर ठहरती संग प्रिय, श्रृंगार तुम्हारा कर देता।।
तू छोड़ गई थी जब मुझको, मन मेरा तब कुम्हलाया था।
मेरे हृदय के इस बगियाँ में, कोई फूल तभी मुर्झाया था।।
उस विरह की प्रेम कहानी को,तेरे नयनों में तब पढलेता।
कुछ देर ठहरती संग प्रिय , श्रृंगार तुम्हारा कर देता।।
तू छोड़ गई थी जब प्रिय, आखों से #बदरा बरसा धा।
तुझे एक नजर मैं देख सकूँ, दिल मेरा पलपल तरसा था।।
जो होती मेरे संमुख तू, एक मूर्ति तेरी गढ देता।
कुछ देर ठहरती संग प्रिय, श्रृंगार तुम्हारा कर देता।।
मेरे #यादों में तू जिंदा है, तुझे खोकर मन शर्मिंदा है।
मैं मांग रहा हूँ #पनाह प्रिय, मेरा आश्रय वहीं चुनिन्दा है।।
एक बार तुझे आलिंगन में, लेकर मैं यवन गढ़ देता।
कुछ देर ठहरती संग प्रिय, श्रृंगार तुम्हारा कर देता।।
मैं रूप सजाता चंदा सा, पर दाग नहीं आने देता।
हम ढूंढ रहे एक दूजे को, यह शब्द नहीं आने तेता।।
मृगनयनी से उन आँखो में, मैं प्रेम का कजरा भर देता।
कुछ देर ठहरती संग प्रिय, श्रृंगार तुम्हारा कर देता।।
***** स्वरचित, स्वप्रमाणित
✍️पं.संजीव शुक्ल “सचिन”