Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
6 Apr 2017 · 4 min read

(ीकहानी ) बदलते परिदृश्य

दृश्यावली
********
1> शरद की बाइक स्टार्ट नही हो पा रही थी, ऒर आँफिस के लिये देर हो रही थी तो बाइक छोडकर निकल पडा। घर से निकलकर बाहर सडक पर आकर एक साइकल रिक्शा वाले को आवाज लगाई…
रिक्शा खाली है क्या?
हाँ बाबूजी कहते हुये रिक्शेवाला नजदीक आ गया
गोलछा चॊक चलेगा क्या, कितने पैसे लेगा?
पूछते हुये शरद करीब करीब रिक्शे मे बैठ ही गया।

बीस रुपये दे देना बाबूजी । कहते हुये रिक्शेवाले ने भी पैडल मारना शुरु कर दिया ।

अरे आजकल तुम लोगों ने बहुत भाव बढा रखे हैं, पंद्रह रुपये दूंगा।

गले मे लिपटे मैले गमछे से बह आई पसीने की धार को पोंछते हुये बोला आजकल मंहगाई का जमाना है बाबूजी इतनी दूरी के लिये बीस रुपये कहाँ ज्यादा हैं वैसे भी जबसे आँटो वालों का धंधा बढा है हम लोगों को सवारी भी कम मिलने लगी है।

ठीक है चल ज्यादा मत बता, मंहगाई हमारे लिये भी बढी है। अच्छा सुन आगे पान ठेले पर रोक लेना जरा सिगरेट लेनी है।

लो बाबूजी ले आओ, एक पान दूकान के सामने रोकते हुये कहा।

एक सिगरेट पैकेट देना, शरद ने सो सॊ के दो नोट पान वाले के काउंटर पर रखते हुये कहा

दूकानदार ने पैकट देकर कहा 195/- रुपये का है ऒर पाँच रुपये चिल्ल्रर नही है….
आँफिस जल्दी पहुचने के लिये फुर्ती से पैकट उठाकर रिक्शे की ओर मुडते हुये कहा, रखा रह पाँच रुपये कॊन मांग रहा है तुझसे…

चल जल्दी कहते हुये रिक्शे मे बैठते तक सिगरेट शरद के होठों पर सज चुकी थी। काफी देर से तलब लगी थी सिगरेट की, हाँ अब मजा आ रहा था धुंवा उडाने का ।

धुंवे के छल्ले उडाते उडाते रिक्शा भी आँफिस तक पहुंच चुका था, अब तक रिक्शेवाला भी पसीने से तर हो चुका था ।

2> शाम को आँफिस से घर लॊटते वक्त शरद ने सोचा चलो पैदल ही चला जाये, कुछ सब्जी भी लेनी है वैसे भी रिक्शे वाले लूटते बहुत हैं आलकल…

सबजी लेते आना लॊटते समय सीमा ने कहा था यह बात याद थी शरद को । सब्जी वाली की गुमटी मे पहुचकर आलू, प्याज, टमाटर, एक दो हरी सब्जी थोडी थोडी तुलवाई ऒर पूछा कितने पैसे?
सब्जी वाली ने हिसाब कर कहा अस्सी रुपये दे दो बाबूजी…
सो का नोट देकर शरद ने कहा लो ऒर बीस रुपये वापस करो, हाँ हरी धनिया व मिर्च भी डाल देना अपनी तरफ से, अस्सी रुपये की सब्जी जो ली है।

नही बाबूजी …..नही पडती! हम भी मोल खरीदकर लाते हैं कहो तो पाँच पाँच की डाल दूं….

डाल तो दो कहकर वापस दस रुपये जेब मे रखते हुये सब्जी का केरीबैग उठाकर बडबडाता हुआ चल पडा …

जिसे देखो वही लूटने मे लगा हुआ है आजकल…

थोडा आगे चलकर एक पसंदीदा दूकान के सामने शरद के कदम ठिठक गये फिर वह दूकान की ओर मुड चला…..
पूछा कितने का है इंग्लिश का क्वार्टर?
साढ़े तीन सॊ का .. दूकान के कर्मचारी ने बाकी की भीड को सामान देते हुये रूखेपन से कहा…
कोई परिचित न देख ले कही से तो जल्दबाजी मे पैसे चुकाकर , क्वार्टर को सब्जी की थैली मे सेट कर बढ चला ।

सोचते सोचते घर पहुच गया कि आज तो रंग जमेगा।
सीमा को सब्जी का थैला पकडाते हुये कहा मेरे लिये कुछ पकॊडे तल दे, सीमा भी समझ गई की आज …..

सबजी का थैला हाथ मे लेकर सीमा कहने लगी …..
सुनो जी आज कामवाली दो सॊ रुपये मांग रही थी कह रही थी कि लडके के लिये कुछ दवाई लानी है.,…
पर मैने तो साफ मना कर दिया कि आखिरी महीना चल रहा है कहाँ से लायें पैसे, क्या मै नही जानती ये कामवालियों के बहाने….

बिल्कुल ठीक किया तुमने… शरद ने कहा, इन लोगों के आये दिन यही नाटक हैं । कहाँ से देते रहें इन्हे पैसे कोई झाड़ लगा है क्या? कल ही देखो हम दोनो माँल मे फिल्म देखने गये थे खाना भी बाहर खाया था , अठारह सॊ रुपये खर्च हुये लेकिन मजा आ गया था बढिया मूवी थी, अब इन्हे कहाँ से दें…

तब तक सीमा ने गिलास लाकर सामने रखा ऒर कहकर किचन की ओर गई कि अभी हाजिर करती हूं पकॊडे…

शरद भी बोतल का ढक्कन खोल गिलास मे उडेलने लगा….इतनी देर मे पकॊडों से भरी प्लेट लाकर सीमा ने सामने रख दी।

गले के नीचे घूंट उतारकर पकोडे उठाते हुये शरद ने कहा तुम कितनी अच्छी हो डार्लिंग…

आप भी न…….शरमाते हुये कहा सीमा ने, अरे सुनो न आज मेरी सहेलियाँ बता रहीं थी कि एक बहुत बढिया साडियों की सेल आई है उसमे तीन हजार कीमत वाली साडियाँ सिर्फ सात सॊ रुपये मे मिल रही हैं, तो कल जाऊंगी ऒर रास्ते मे आपके लिये भी कुछ अच्छा सा नजर आया तो लेती अाउंगी…

तब तक एक पैग शरद के अंदर जा चुका था थोडा सुरूर भी चढने लगा था …

सीमा की तरफ अाँख दबाकर बोला. चले जाना, तुम्हारे लिये कोई बात है क्या….

गीतेश दुबे

Language: Hindi
476 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
ये जो फेसबुक पर अपनी तस्वीरें डालते हैं।
ये जो फेसबुक पर अपनी तस्वीरें डालते हैं।
Manoj Mahato
कोई गैर न मानिए ,रखिए सम्यक ज्ञान (कुंडलिया)
कोई गैर न मानिए ,रखिए सम्यक ज्ञान (कुंडलिया)
Ravi Prakash
एहसास दिला देगा
एहसास दिला देगा
Dr fauzia Naseem shad
तीर'गी  तू  बता  रौशनी  कौन है ।
तीर'गी तू बता रौशनी कौन है ।
Neelam Sharma
2642.पूर्णिका
2642.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
आज़ाद हूं मैं
आज़ाद हूं मैं
Suman (Aditi Angel 🧚🏻)
बहें हैं स्वप्न आँखों से अनेकों
बहें हैं स्वप्न आँखों से अनेकों
सिद्धार्थ गोरखपुरी
ख़याल
ख़याल
नन्दलाल सुथार "राही"
“जिंदगी की राह ”
“जिंदगी की राह ”
Yogendra Chaturwedi
डॉ अरुण कुमार शास्त्री
डॉ अरुण कुमार शास्त्री
DR ARUN KUMAR SHASTRI
श्री विध्नेश्वर
श्री विध्नेश्वर
Shashi kala vyas
पाती कोई जब लिखता है।
पाती कोई जब लिखता है।
डॉक्टर रागिनी
हिंदी दिवस पर एक आलेख
हिंदी दिवस पर एक आलेख
कवि रमेशराज
कहमुकरी
कहमुकरी
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
भाई बहिन के त्यौहार का प्रतीक है भाईदूज
भाई बहिन के त्यौहार का प्रतीक है भाईदूज
gurudeenverma198
" कृषक की व्यथा "
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
*कभी मिटा नहीं पाओगे गाँधी के सम्मान को*
*कभी मिटा नहीं पाओगे गाँधी के सम्मान को*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
इंसान चाहे कितना ही आम हो..!!
इंसान चाहे कितना ही आम हो..!!
शेखर सिंह
हमने किस्मत से आँखें लड़ाई मगर
हमने किस्मत से आँखें लड़ाई मगर
VINOD CHAUHAN
भूत अउर सोखा
भूत अउर सोखा
आकाश महेशपुरी
कैसा गीत लिखूं
कैसा गीत लिखूं
नवीन जोशी 'नवल'
जय माता दी 🙏
जय माता दी 🙏
Anil Mishra Prahari
यही जीवन है
यही जीवन है
Otteri Selvakumar
मैंने पीनी छोड़ तूने जो अपनी कसम दी
मैंने पीनी छोड़ तूने जो अपनी कसम दी
Vishal babu (vishu)
एक सांप तब तक किसी को मित्र बनाकर रखता है जब तक वह भूखा न हो
एक सांप तब तक किसी को मित्र बनाकर रखता है जब तक वह भूखा न हो
Rj Anand Prajapati
शिर्डी के साईं बाबा
शिर्डी के साईं बाबा
Sidhartha Mishra
#गुस्ताख़ी_माफ़
#गुस्ताख़ी_माफ़
*Author प्रणय प्रभात*
दर्स ए वफ़ा आपसे निभाते चले गए,
दर्स ए वफ़ा आपसे निभाते चले गए,
ज़ैद बलियावी
If We Are Out Of Any Connecting Language.
If We Are Out Of Any Connecting Language.
Manisha Manjari
"लाठी"
Dr. Kishan tandon kranti
Loading...