हड़ताली किसान का सपना..
सूरज से निकलकर रश्मियां
खेत की मिट्टी से बातें करेंगी
रात की ठंडक में अलसाई
मिट्टी को गर्म कर चमक भरेंगी ।
लालबाग से आती रश्मियां
परिंदों को साथ लाएंगी
गुनगुनाते हुए परिंदे
पंख सिकोड़कर
खेत में दानों का भोज करेंगे ।
शाम को मुरझाए घास के पत्ते
रश्मियों का आलिंगन कर
ओस को अलविदा कहेंगे
तितलियाँ और भौंरे निकलकर
फूल पत्तियों पर ठिठोली करेंगे ।
डाँट फटकार उड़ाते हुये
मवेशियों के झुण्ड
उत्साह से अंगड़ाई तोड़ेंगे
हरी घास मुँह में दबाए धन्यवाद कहेंगें ।
पगडंडियों से आता हुआ
दूधिया जब हंसेगा
शहर जाता हुआ सब्जी का ठेला
अलविदा कहेगा ।
उलझन में उलझी हुई पत्नी
खेत में खाना लाएगी
लौटे में भरकर छाछ पिलाएगी
आँचल में छुपाकर
गुड़ का ढेला खिलाएगी
निहार कर फसलों को
आसमान को देखेगी
रख कर बैलों पर हाथ
उनको हाथों से घास खिलाएगी ।
खुले आसमान के नीचे
सो रहा था सड़क पर
मांगने मेहनत का हक
ठण्ड ने बर्फ कर दिया
थामकर उसकी साँसों का जीवन रथ ।
अब वो शुबह फिर ना आएगी …..
अब वो शुबह फिर ना आएगी…