‘हौसले की ओर’
टूटते शाखों से पत्ते, पतझड़ का संदेश है।
आएगी फिर बहार, यह प्रकृति का वेश है।
न हो दुःखी कोई दिल हल्का करके ‘मयंक’,
मौसम बनते बिगड़ते हैं यहाँ,ये भारत देश है।।
खिलते पुष्प फिर, होती हरी-भरी हैं डालियाँ।
घोंसला बना फिर,खिल-खिलाती हैंं चीड़ियाँ।
बुलंद रख हौसले ‘मयंक’, उम्मीदें ताजा रख,
हार जाते हैं दुर्दिन, मिट जाती हैं मजबूरियाँ।