हो सके तो देख लेना
गाँव में दिखता नहीं अब गाँव
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हो सके तो देख लेना, आज आकर गाँव,
खो गई है आज सारी, प्रेम वाली भाव।
पेड़ सारे ठूंठ होकर , मिट रही है छाँव,
गाँव में दिखता नहीं है, आज अपना गाँव।।
ताल सब सूखा पड़ा है, बाग है बेहाल,
आज अपने गाँव का मैं, क्या बताऊँ हाल।
खेत सारे मिट रहे है, मिट गया खलिहान,
मिट गये वो भीत के घर, मिट गई वो छाँन्ह।।
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पं.संजीव शुक्ल “सचिन”