” हो गये पल में पराये ” !!
नेह के धागे बन्धे थे ,
द्वार खुशियों से सजे थे !
बचपन की यादें सुहानी ,
अंखियों में वे रतजगे थे !
जाने कैसी घड़ी आयी –
बोल बागी नज़र आये !!
झनझना कर तार टूटे ,
रिश्ते लगे बेकार झूंठे !
टूट कर चाहा था जिनको ,
ले अहं का भाव रूठे !
महके महके ख़्वाब टूटे –
पलकों पे ना संवर पाये !!
जब कभी शीशा दरका ,
उसकी कोई ना सुनता !
दूसरा सजने को आतुर ,
जो टूटा , टूटा औ बिखरता !
वक़्त बांधे ना बंधे है –
बनते बिगड़ते अपने साये !!