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4 Nov 2020 · 1 min read

हो गई शाम अब तो घर जाएँ

हो गई शाम अब तो घर जाएँ
आप कह दो अगर ठहर जाएँ

चाँद फिर ओट से निकल आए
ज़ुल्फ़ बिखरी हैं गर संवर जाएँ

रोक लेंगे अगरचे देख लिया
क्यूँ न चुपके से हम गुज़र जाएँ

मैं जो बिखरा तो मिट ही जाऊँगा
वो हैं ख़ुश्बू भले बिखर जाएँ

रंजोग़म ज़िन्दगी के अपने सब
वो हमारे ही नाम कर जाएँ

नाम सबकी ज़ुबाँ पे रह जाये
काम कोई महान कर जाएँ

कितने आनन्द के वो क्षण होंगे
आप दो पल अगर ठहर जाएँ

– डॉ आनन्द किशोर

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