होली
???होली है ???
इक तो मंहगाई की मार ,
बा पे आ गऔ जो त्योहार ,
होली कैसे खेले रे………
मोडी मोड़ा कै रऐ हैं ,
हम नई पिचकारी लेहै ,
अगर लुवे हो अभऊ हमे ने
हम लोटपोट हो जेहे ,
घर मे मची है हाहाकार ,
हम गए समझा समझा हार ।
होली केसे………….
घरवाली के रई है घर मे ,
बेसन शक्कर नैया ,
बिन सामान के केसे बन है ,
गूझा और पपैया ,
तुम हो नामइ के करतार
घर कॊ हो गऔ बंटाधार ॥
होली केसे…………
कौन जनम कॊ बदला ले रओ ,
मौसे ऊपर बारो ,
अच्छे अच्छे रिश्ते छोड़ के
जो मेरे करम मे डारौ ,
जो तो बिल्कुल है बेकार ,
कैसे लग है जीवन पार ॥
होली केसे……….
लेके अपने झोली झोला ,
पहुँचे हम बाजारे ,
देख के हमको दुकानदार ने ,
मौ और नाक बिगारे ,
तुमखौ ने मिलहे उधार ,
हमको माफ करो सरकार ,
होली केसे………..
खाली लौटत देख के हमको
मैडम बन गई ममता ,
बोली हमरी सहनशक्ति की ,
ख़तम हो गई क्षमता ,
छोड़ के अपनो जो घरद्वार ,
पौच गई हमरी सुसरार ॥
होली केसे…………
दीपक गुप्ता दीप
सालीचोका साहित्य परिषद ॥