होना साम्राज्ञी
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भाग्य नहीं है होना साम्राज्ञी-
तुम्हारा देह, नैन-नक्श कामुक बस।
विकल्प एक और है-
धनाढ्य हों अभिभावक।
यह सत्य है।
बाकी सारा कुछ पारिस्थितिक असत्य है।
साम्राज्ञी होकर क्या जीती है! साम्राज्ञी?
रक्त-सने कटारों के कटाक्ष।
या सम्राट के भाले-तलवारों के सड़ांध रक्त।
रत्नों के अहंकार।
इत्रों में दबे हुए
पके हुए मांसल प्राणियों के जले दुर्गंध।
हत्याओं का षडयंत्र।
सभ्य भाषाओं से खोता हुआ नियंत्रण।
आखिर क्या जीती है साम्राज्ञियाँ!
बनकर रह जाती है नहीं क्या
बच्चे जनने की मशीन।
जवान होते ही आपस में कट-मरने की कहानियाँ।
कोई नहीं मानता सहोदरिता का धर्म।
आँसू बहाना मना है ऐसी माँओं का।
सीमित रहता है ऐसे व्यक्तित्वों का उपयोग
यौन-आकर्षण तक, हजार पाबंदियों के साथ।
वास्तव में क्या जीती हैं साम्राज्ञियाँ आम तौर पर?
ईर्ष्या से जली-भुनी
तुम्हारे सौंदर्य से डरी-सहमी
परित्यक्त होने की आशंकाओं से दबी-दबी
खजुराहो के हर दीवार पर हर मुद्रा में
परोसती हुई अपने आपको
क्या जीती हैं साम्राज्ञियाँ
ईश्वर का आदेश? मोक्ष की आकांझा?
या अपनी पराजय?
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